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ग़ज़ल
मुरत्तब कर लिया है कुल्लियात-ए-ज़ख़्म अगर अपना
तो फिर 'एहसास-जी' इस की इशाअ'त क्यूँ नहीं करते
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
ये 'एहसास' मियाँ अन्दर से बिल्कुल बच्चे हैं
साथ में उन के खेल रहे हैं अक्कड़-बक्कड़ हम
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
अजीब तर्ज़-ए-तग़ज़्ज़ुल है ये मियाँ 'एहसास'
कि जिस्म-ओ-रूह को इक सुर में गाना पड़ता है