आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "ईसार"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "ईसार"
ग़ज़ल
मोहब्बत का सिला ईसार का हासिल नहीं मिलता
वो नज़रें बार-हा मिलती हैं लेकिन दिल नहीं मिलता
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
मोहब्बत जज़्बा-ए-ईसार से परवान चढ़ती है
ख़ुलूस-ए-दिल न हो तो दोस्ती से कुछ नहीं होता
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
बहुत एहसान जताने से तअ'ल्लुक़ टूट जाता है
बहुत ईसार-ओ-क़ुर्बानी के जज़्बे मार देते हैं
नुज़हत अब्बासी
ग़ज़ल
बुख़्ल से मंसूब करते हैं ज़माने को सदा
गर कभी तौफ़ीक़-ए-ईसार ओ अता पाते हैं हम
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
वफ़ा ईसार क़ुर्बानी वहाँ अब लोग क्या जानें
जहाँ नीलाम होते ज़र्फ़-ओ-ख़ुद्दारी की बातें हैं
हिना रिज़्वी
ग़ज़ल
जिस तरफ़ देखा उधर अपने ही थे ख़ंजर-ब-कफ़
फिर मिरे ईसार को तलवार तो होना ही था
सलीम शुजाअ अंसारी
ग़ज़ल
तुझे अब क्या कहें ऐ मेहरबाँ अपना ही रोना है
कि सारी ज़िंदगी ईसार भी करते नहीं बनता