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ग़ज़ल
अपने अंदर बाहर ''जम जम फैले मुश्क-नसीबो दी''
चादर का उजला-पन भूलो इत्र न छिड़को पसीने पर
प्रेम कुमार नज़र
ग़ज़ल
उजला रहेगा सिर्फ़ मोहब्बत के जिस्म पर
सदियों का पैरहन हो कि पल का लिबास हो
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
सर पे तेग़-ए-बे-अमाँ हाथों में प्याला ज़हर का
किस तरह होंटों पे लाऊँ हाल अपने शहर का
मोहसिन एहसान
ग़ज़ल
ज़मीं ने ख़ून उगला आसमाँ ने आग बरसाई
जब इंसानों के दिल बदले तो इंसानों पे क्या गुज़री
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
किसी काग़ज़ के सीने पर ये जज़्बा दर्ज कर देना
मिरे भाई के हक़ में मेरा हिस्सा दर्ज कर देना