आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "उनवाँ"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "उनवाँ"
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
पढ़ता नहीं ख़त ग़ैर मिरा वाँ किसी 'उनवाँ
जब तक कि वो मज़मूँ में तसर्रुफ़ नहीं करता
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
है फ़साना इश्क़ का डूबा है साहिल अश्क में
मेरे मज़मूँ का ये उनवाँ तल्ख़ियाँ ही ठीक हैं
ए.आर.साहिल "अलीग"
ग़ज़ल
नहीं इक़लीम-ए-उल्फ़त में कोई तूमार-ए-नाज़ ऐसा
कि पुश्त-ए-चश्म से जिस की न होवे मोहर उनवाँ पर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हमारे बाद ही ख़ून-ए-शहीदाँ रंग लाएगा
यही सुर्ख़ी बनेगी ज़ेब-ए-उनवाँ हम नहीं होंगे
अब्दुल मजीद सालिक
ग़ज़ल
अफ़्साना मुकम्मल है लेकिन अफ़्साने का उनवाँ कुछ भी नहीं
ऐ मौत बस इतनी मोहलत दे उन का कोई पैग़ाम आ जाए
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
वीराना-ए-मक़तल पे हिजाब आया तो इस बार
ख़ुद चीख़ पड़ा मैं कि ये उनवाँ भी मिरा है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
बहुत मसरूर हैं वो छीन कर दिल का सुकूँ 'उनवाँ'
हुजूम-ए-ग़म में भी मुझ को हँसी आई तो क्या होगा
उनवान चिश्ती
ग़ज़ल
मैं वो शाएर हूँ जो शाहों का सना-ख़्वाँ न हुआ
ये है वो जुर्म जो मुझ से किसी उनवाँ न हुआ