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ग़ज़ल
ये वक़्त आने पे अपनी औलाद अपने अज्दाद बेच देगी
जो फ़ौज दुश्मन को अपना सालार गिरवी रख कर पलट रही है
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
जुनूँ के हात अब मैं क्या कहूँ दिल सख़्त हैराँ है
गरेबाँ कर चुका हूँ नज़्र आगे अब ये दामाँ है