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ग़ज़ल
कठ-पुतली के रूप में आक़ा देखे देखे लगते हैं
डोर हिलाने वाले भी कुछ बहके बहके रखते हैं
रेहान अल्वी
ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
देखो इंसाँ ख़ाक का पुतला बना क्या चीज़ है
बोलता है इस में क्या वो बोलता क्या चीज़ है
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
आग की लपटें हैं मुझ में मोम का पुतला है तू
पास मेरे आ रहा है कितना दीवाना है तू
अक्स फिरोज़पुरी
ग़ज़ल
लुत्फ़ ओ करम के पुतले हो अब क़हर ओ सितम का नाम नहीं
दिल पे ख़ुदा की मार कि फिर भी चैन नहीं आराम नहीं