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ग़ज़ल
तिरी मक़बूलियत की वज्ह वाहिद तेरी रमज़िय्यत
कि उस को मानते ही कब हैं जिस को जान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
ये अहद-ए-तर्क-ए-मोहब्बत है किस लिए आख़िर
सुकून-ए-क़ल्ब उधर भी नहीं इधर भी नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
क़ल्ब ओ निगाह की ये ईद उफ़ ये मआल-ए-क़ुर्ब-ओ-दीद
चर्ख़ की गर्दिशें तुझे मुझ से छुपा के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
वारदात-ए-क़ल्ब लिक्खी हम ने फ़र्ज़ी नाम से
और हाथों-हाथ उस को ख़ुद ही ले जा कर दिया
आदिल मंसूरी
ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
इल्म का मक़्सूद है पाकी-ए-अक़्ल ओ ख़िरद
फ़क़्र का मक़्सूद है इफ़्फ़त-ए-क़ल्ब-ओ-निगाह
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ताअत नहीं है वो कि जो हो बे-हुज़ूर-ए-क़ल्ब
ऐ शैख़ क्या धरा है रुकू-ओ-सुजूद में