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ग़ज़ल
मछेरे कश्तियों में बैठ कर के गा रहे हैं गीत
हवाएँ मुस्कुरा कर मिल रही हैं बादबानों से
आशू मिश्रा
ग़ज़ल
तू फिर क्यूँ लौट कर हर बार आ जाती हैं साहिल पर
अगर इन कश्तियों को उम्र भर पानी में रहना है
ख़ुशबीर सिंह शाद
ग़ज़ल
जब हवा के रुख़ पर ही कश्तियों को बहना था
तुम ने बादबानों को क्यूँ खुला नहीं रक्खा