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ग़ज़ल
समझ में आएँ क्या बारीकियाँ क़ानून-ए-क़ुदरत की
इबादत कसरत-ए-मअ'नी से मुबहम होती जाती है
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
न छेड़ो मुझ को मैं ग़व्वास हूँ दरिया-ए-मअनी का
न ढूँडो मुझ को मुसतग़रक़ हूँ मैं बिल्कुल समुंदर में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
दस्तरस आसाँ नहीं कुछ ख़िर्मन-ए-मअ'नी तलक
जो भी आएगा वो लफ़्ज़ों के गुहर ले जाएगा
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
तू है मअ'नी पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ से बाहर तो आ
ऐसे पस-मंज़र में क्या रहना सर-ए-मंज़र तो आ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
तेग़ का फल खाया आब-ए-तेग़ पी कर सो रहे
कसरत-ए-आब-ओ-ग़िज़ा से वाक़ई आती है नींद
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
आह ऐ कसरत-ए-दाग़-ए-ग़म-ए-ख़ूबाँ कि मुदाम
सफ़्हा-ए-सीना पुर-अज़-जल्वा-ए-ताऊसी है
मीर क़मरूद्दीन मन्नत
ग़ज़ल
कसरत-ए-जौर-ओ-सितम से हो गया हूँ बे-दिमाग़
ख़ूब-रूयों ने बनाया 'ग़ालिब'-ए-बद-ख़ू मुझे
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हो गया मेहमाँ-सरा-ए-कसरत-ए-मौहूम आह!
वो दिल-ए-ख़ाली कि तेरा ख़ास ख़ल्वत-ख़ाना था