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ग़ज़ल
मुज़्दा ऐ ज़ौक़-ए-असीरी कि नज़र आता है
दाम-ए-ख़ाली क़फ़स-ए-मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार के पास
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
रात करता था वो इक मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार से बहस
मैं भी ता-सुब्ह रखी बुलबुल-ए-गुलज़ार से बहस
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
क़ैदी-ए-ज़ुल्फ़ की क़िस्मत में है रुख़्सार की सैर
शुक्र है बाग़ भी है मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार के पास
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
कैसे टेढ़ा न चले मार बड़ी मुश्किल है
सीधी हो ज़ुल्फ़-ए-गिरह-दार बड़ी मुश्किल है
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मुर्ग़-ए-सहर अदू न मोअज़्ज़िन की कुछ ख़ता
'परवीं' शब-ए-विसाल में सब है फ़ुतूर-ए-सुब्ह
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
किस का चमकता चेहरा लाएँ किस सूरज से माँगें धूप
घोर अँधेरा छा जाता है ख़ल्वत-ए-दिल में शाम हुए
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ताइर-ए-दिल को हवा-ए-ख़म-ए-ज़ुल्फ़-ए-सय्याद
सूरत-ए-मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार लिए फिरती है
इम्दाद इमाम असर
ग़ज़ल
गिरफ़्तार-ए-मोहब्बत कर लिया बातों ही बातों में
तसलसुल से नुमायाँ हो गई ज़ंजीर की सूरत
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
'आशिक़ान-ए-ज़ुल्फ़-ए-जानाँ के 'अजब अतवार हैं
ख़ुद गिरफ़्तार-ए-बला हों ख़्वाहिश-ए-रम भी करें
शकील इबन-ए-शरफ़
ग़ज़ल
क्या छोड़ें असीरान-ए-मोहब्बत को वो जिस ने
सदक़े में न इक मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार भी छोड़ा
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
ख़ामोश अंदलीब-ए-चमन तुझ से किया है बहस
अपना सुख़न तो मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार साथ है