aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "क़ाफ़िया-पैमाई"
हम क़ाफ़िया-पैमाई के चक्कर में पड़े हैंहै सिन्फ़-ए-ग़ज़ल क़ाफ़िया-पैमाई से आगे
कैसे अशआर में लाएगा ग़ज़ल की ख़ुशबूवो जो मसरूफ़ है बस क़ाफ़िया पैमाई में
सकता क़ुबूल क़ाफ़िया पैमाई को नहींबे-वज़्न होना मत कि तराज़ू ग़ज़ल में है
हम से पहले भी सुख़नवर हुए कैसे कैसेहम ने भी थोड़ी बहुत क़ाफ़िया-पैमाई की
शाएरी तो वारदात-ए-क़ल्ब की रूदाद हैक़ाफ़िया-पैमाई को मैं शाएरी कैसे कहूँ
ऐसी हालत में नज़र आया है वो आज 'नबील'जैसे शे'रों में कोई क़ाफ़िया-पैमाई हो
आप को शेर नज़र आते हैं लेकिन 'मुख़्तार'हम को ये क़ाफ़िया-पैमाई नज़र आती है
जब मिली तहरीक मुझ को क़ाफ़िया-पैमाई कीहर्फ़ की हुरमत लिए सज्दे को आईं उँगलियाँ
इस लिए रह गए अहबाब से पीछे 'अशरफ़'हम से ये क़ाफ़िया-पैमाई नहीं होती है
कौन देता है यहाँ दाद-ए-सुख़न अब 'फ़ारूक़'क्यूँ जलाता है लहू क़ाफ़िया-पैमाई कर
सोच का लोच कभी उन को मयस्सर न हुआबाज़ लोगों ने फ़क़त क़ाफ़िया-पैमाई की
शाइरी काम है मेरा सो मैं कहता हूँ ग़ज़लये अबस शौक़ नहीं क़ाफ़िया-पैमाई का
जिस को इक उम्र ग़ज़ल से किया मंसूब 'नसीर'उस को परखा तो खुला क़ाफ़िया-पैमाई है
खुलना था अपने ऐब ओ हुनर का भरम कहाँये भी हुआ तो क़ाफ़िया-पैमाई से हुआ
ग़ज़लों में अब वो रंग न रानाई रह गईकुछ रह गई तो क़ाफ़िया-पैमाई रह गई
अब ये आलम है कि अशआ'र में ख़ूँ थूकता हूँऔर वो कहते हैं फ़क़त क़ाफ़िया-पैमाई है
बस एक क़ाफ़िया-पैमाई हम ने की है 'सुहैल'सो ऐ ग़ज़ल तिरी ता'ज़ीर चाहते हैं हम
तू अगर ख़ुश है तो जा क़ाफ़िया-पैमाई करशेर को रूह की लड़ियों में पिरोने दे मुझे
जिस में दहके हुए शो'ले की सी तासीर न होवो 'ज़िया' शे'र नहीं क़ाफ़िया-पैमाई है
तू कहाँ हद्द-ए-सुख़नवर की है ज़द में 'आरिफ़'सिर्फ़ महदूद है तू क़ाफ़िया-पैमाई तक
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