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ग़ज़ल
देख हमारी दीद के कारन कैसा क़ाबिल-ए-दीद हुआ
एक सितारा बैठे बैठे ताबिश में ख़ुर्शीद हुआ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
उस तरफ़ वो तो इधर हम हैं परेशाँ 'बेबाक'
ख़्वाहिश-ए-दीद किसी तौर न टाली जाए
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
इज़्न-ए-जल्वा मिल चुका है अब तुझे ए चश्म-ए-शौक़
कामयाब-ए-जल्वा-गाह-ए-नाज़ होना चाहिए
ज़ेब बरैलवी
ग़ज़ल
इशरत-ए-दीद है यही अपना भी कुछ रहे न होश
जल्वा ब-क़ैद-ए-ताब-ए-दीद अस्ल में जल्वा ही नहीं
हादी मछलीशहरी
ग़ज़ल
मज़ाक़-ए-दीद बख़्शा तो शुऊ'र-ए-दीद भी बख़्शो
तुम्हें देखूँगा मैं कैसे नज़र ऐसी कहाँ मेरी
माहिर क़ुरैशी बरेलवी
ग़ज़ल
लज़्ज़त-ए-बे-ख़ुदी-ए-दीद की रूदाद न पूछ
इक फ़साना है जो कुछ याद है कुछ याद नहीं