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ग़ज़ल
किचन में तोड़ कर अंडे सितम तोड़ा है ये कह कर
सफ़ेदी आप की है और सारी ज़र्दियाँ मेरी
बुलबुल काश्मीरी
ग़ज़ल
जो ख़याली थे पुलाओ ज़ाइक़ा उन का लिया
अब दिमाग़ों के किचन में हाँडियाँ उल्टी हुईं
संजय कुमार कुन्दन
ग़ज़ल
जिसे कहती है दुनिया कामयाबी वाए नादानी
उसे किन क़ीमतों पर कामयाब इंसान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
वो करें भी तो किन अल्फ़ाज़ में तेरा शिकवा
जिन को तेरी निगह-ए-लुत्फ़ ने बर्बाद किया
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
किन राहों से सफ़र है आसाँ कौन सा रस्ता मुश्किल है
हम भी जब थक कर बैठेंगे औरों को समझाएँगे
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
बर्ग-ए-गुल पर रख गई शबनम का मोती बाद-ए-सुब्ह
और चमकाती है उस मोती को सूरज की किरन