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ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
मुझ से बेहतर कोई दुनिया में किताबत नहीं करने वाला
पर तिरे हिज्र की मैं जल्द इशाअत नहीं करने वाला
रफ़ी रज़ा
ग़ज़ल
कोई सानी नहीं 'इरफ़ान' के हैदर का दुनिया में
फ़साहत में बलाग़त में किताबत में ख़िताबत में
इरफान आबिदी मानटवी
ग़ज़ल
काग़ज़ की सदाक़त हूँ गो वक़्फ़-ए-किताबत हूँ
सफ़्हों से इबारत हूँ खुलना है मुहाल अपना
मुहिब आरफ़ी
ग़ज़ल
घेरा जो मुझे दायरा-ए-रंज-ओ-अलम ने
क्या मेरे मुक़द्दर की किताबत नहीं अच्छी
आशिक़ हुसैन बज़्म आफंदी
ग़ज़ल
मुरत्तब हो गई फ़र्द-ए-अमल यूँ ख़ुद-बख़ुद 'कौकब'
मिरे दीवान-ए-शे'री की किताबत होती जाती हे