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ग़ज़ल
है मुश्किल दौर सूखी रोटियाँ भी दूर हैं हम से
मज़े से तुम कभी काजू कभी किशमिश चबाते हो
महावीर उत्तरांचली
ग़ज़ल
बहुत बेबाक आँखों में त'अल्लुक़ टिक नहीं पाता
मोहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
हिजरतों का ख़ौफ़ था या पुर-कशिश कोहना मक़ाम
क्या था जिस को हम ने ख़ुद दीवार-ए-जादा कर लिया
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
गाँठ अगर लग जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी
लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है
हस्तीमल हस्ती
ग़ज़ल
वो अपना जिस्म सारा सौंप देना मेरी आँखों को
मिरी पढ़ने की कोशिश आप का अख़बार हो जाना
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
रोके दुनिया में है यूँ तर्क-ए-हवस की कोशिश
जिस तरह अपने ही साए से गुरेज़ाँ होना