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ग़ज़ल
बला जाने 'असर' दौराँ ये कीधर चर्ख़ मारे है
हमारी बज़्म में दिन रात दौर-ए-जाम रहता है
सैय्यद मोहम्मद मीर असर
ग़ज़ल
मिस्सी की धड़ी उस की नज़रों से जो है ग़ाएब
या-रब वो सियह बदली कीधर को बरसती है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
आते आते तर्फ़ मेरे मुड़ के फिर कीधर चले
जान-साहब! बिन तुम्हारे खा के ग़म हम मर चले
मिर्ज़ा अज़फ़री
ग़ज़ल
हम न जानें किस तरफ़ काबा है और कीधर है दैर
एक रहती है यही उस दर पे जाने की ख़बर
हसरत अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
गुज़र इस हुज्रा-ए-गर्दूं से हो कीधर अपना
क़ैद-ख़ाना है 'अजब गुम्बद-ए-बे-दर अपना