आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "ख़ंदा-ज़न"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "ख़ंदा-ज़न"
ग़ज़ल
कोई क्यों तूर पर ख़ंदा-ज़न-ए-ज़ौक़-ए-नज़र होता
कलीम अपनी जगह करना था पहले इम्तिहाँ अपना
अफ़क़र मोहानी
ग़ज़ल
अल्लाह अंदलीब हूँ मैं किस क़िमाश का
गुल इस चमन के मुझ पे हैं क्यों ख़ंदा-ज़न तमाम
अबुल बक़ा सब्र सहारनपुरी
ग़ज़ल
जो ख़ंदा-ज़न हैं ग़रीबों की तीरा-बख़्ती पर
उन्हें हमारे मुक़द्दर की तीरगी मिल जाए