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ग़ज़ल
कब गिरफ़्तार-ए-ख़म-ए-गेसू-ए-हिज्राँ न रहा
कब तिरे दर्द ने आज़ार किया है बरसों
अनवारूल हसन अनवार
ग़ज़ल
मैं तो हर हर ख़म-ए-गेसू की तलाशी लूँगा
कि मिरा दिल है तिरे गेसू-ए-ख़मदार के पास
मुबारक अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
क्या कहा फिर तो कहो दिल की ख़बर कुछ भी नहीं
फिर ये क्या है ख़म-ए-गेसू में अगर कुछ भी नहीं
मोहम्मद अली तिशना
ग़ज़ल
गया जो इस ख़म-ए-गेसू में वाँ का हो रहा 'सालिक'
ये हैरत है सलामत क्यूँ कि फिर कर शाना आता है
क़ुर्बान अली सालिक बेग
ग़ज़ल
फ़साना-ए-ख़म-ए-गेसू में कैफ़ कुछ भी नहीं
निज़ाम-ए-आलम-ए-ज़ेर-ओ-ज़बर की बात करो