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ग़ज़ल
ज़माना बरसर-ए-पैकार है पुर-हौल शो'लों से
तिरे लब पर अभी तक नग़्मा-ए-ख़य्याम है साक़ी
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
मैं ब-सद-ब-सद-फ़ख़्रिया ज़ुहहाद से कहता हूँ 'मजाज़'
मुझ को हासिल, शर्फ़-ए-बैअत-ए-ख़य्याम अभी
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
कलाम जिस का है मेराज 'हाफ़िज़'-ओ-'ख़य्याम'
यही वो 'अख़्तर'-ए-ख़ाना-ख़राब है साक़ी
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
तिरी इन मद-भरी आँखों से बढ़ कर जाम क्या होगा
कोई मुझ से बड़ा दुनिया में अब ख़य्याम क्या होगा
प्रदीप तिवारी दीप
ग़ज़ल
आग़ोश में और वक़्त के बाक़ी हैं सुख़नवर
'ग़ालिब' भी कई 'मीर' भी 'ख़य्याम' बहुत हैं
चाँद अकबराबादी
ग़ज़ल
हम में कल के न सही 'हाफ़िज़'-ओ-'ख़य्याम' 'ज़फ़र'
आज के 'हाफ़िज़'-ओ-'ख़य्याम' अभी बाक़ी हैं
सिराजुद्दीन ज़फ़र
ग़ज़ल
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
इंसाँ की है औलाद अगर वो 'मुल्ला' हो या और कोई
हंगाम-ए-जवानी फ़लसफ़ा-ए-'ख़य्याम' से बचना मुश्किल है
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
हम में कल के न सही 'हाफ़िज़'-ओ-'ख़य्याम' 'ज़फ़र'
आज के 'हाफ़िज़'-ओ-'ख़य्याम' अभी बाक़ी हैं