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ग़ज़ल
ख़ामी-ए-ज़ौक़-ए-तलब ने हमें रक्खा महरूम
ये ग़लत है न सुनी हो तिरी आवाज़ कहीं
सग़ीर अहमद सग़ीर अहसनी
ग़ज़ल
ख़ामी-ए-ज़ौक़-ए-नज़र थी वर्ना ऐ नाकाम-ए-इश्क़
ज़र्रे ज़र्रे से नुमायाँ जल्वा-ए-जानाना था
एहसान दानिश
ग़ज़ल
तिरे अंदाज़ की ग़ारत-गरी भी क्या क़यामत है
कि नक़्द-ए-ज़िंदगी-ओ-गौहर-ए-ईमाँ नहीं मिलता
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
ग़ज़ल
अदा-ओ-नाज़-ए-ईमा चश्म-ए-ग़म्ज़ा गो वो कोई हो
त'अल्लुक़ जिस से हो जाए बला-ए-नागहानी है
नसीम देहलवी
ग़ज़ल
यूँ तो हैं सारे बुताँ ग़ारत-गर-ए-ईमाँ-ओ-दीं
एक वो काफ़िर सनम नाम-ए-ख़ुदा क्या चीज़ है
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
मैं ने हर बुत की परस्तिश की कुछ इस अंदाज़ से
कुफ़्र मेरा लाएक़-ए-अर्बाब-ए-ईमाँ हो गया
राम कृष्ण मुज़्तर
ग़ज़ल
जान दे दीजिए आदाब-ए-मोहब्बत के लिए
देखिए ख़ामी-ए-जज़्बात न होने पाए