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दे सकेगा न तुम्हें फिर कोई आवाज़ कहीं

सग़ीर अहमद सग़ीर अहसनी

दे सकेगा न तुम्हें फिर कोई आवाज़ कहीं

सग़ीर अहमद सग़ीर अहसनी

MORE BYसग़ीर अहमद सग़ीर अहसनी

    दे सकेगा तुम्हें फिर कोई आवाज़ कहीं

    मेरी हस्ती का अगर टूट गया साज़ कहीं

    इश्क़ महकूम सही बेकस-ओ-मजबूर सही

    हुस्न तन्हा भी हुआ है असर-अंदाज़ कहीं

    ग़म-ए-ना-क़दरी-ए-दुनिया तो नहीं है लेकिन

    निगह-ए-दोस्त कर दे नज़र-अंदाज़ कहीं

    ख़ामी-ए-ज़ौक़-ए-तलब ने हमें रक्खा महरूम

    ये ग़लत है सुनी हो तिरी आवाज़ कहीं

    बहर-ए-हस्ती में जो उभरा तो उभारा तू ने

    मैं हुआ आप दोस्त सर-अफ़राज़ कहीं

    रंग माहौल-ए-चमन से ये हुवैदा है 'सग़ीर'

    काम आएगी मिरी जुरअत-ए-पर्वाज़ कहीं

    स्रोत :
    • पुस्तक : Nuquush-e-daaG (पृष्ठ 213)
    • रचनाकार : Sahir Hoshiyarpuri
    • प्रकाशन : Haryana Urdu Acadami (1992)
    • संस्करण : 1992

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