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ग़ज़ल
चाहता हूँ पहले ख़ुद-बीनी से मौत आए मुझे
आप को देखूँ ख़ुदा वो दिन न दिखलाए मुझे
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
कहाँ तक आईना-दार-ए-तजल्लियात-ए-ख़ुद-बीनी
ये पर्दा भी उलट दे ओ दिल-ओ-जाँ देखने वाले
बासित भोपाली
ग़ज़ल
जमाल-ओ-नख़वत-ओ-ख़ुद-बीनी-ओ-ख़ुद-आराई
जो कुछ है तेरे लिए कब है मासिवा के लिए
सय्यद शब्बीर हसन रिज़वी
ग़ज़ल
ज़ौक़-ए-ख़ुद-बीनी ने दिखलाई 'सहर' अपनी बहार
हुस्न के मा'सूम चेहरे पर निखार आ ही गया
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
समझते हैं इसे अहल-ए-नज़र सामान-ए-ख़ुद-बीनी
शिकस्ता आइने का वो कभी मातम नहीं करते
आज़ाद गुरदासपुरी
ग़ज़ल
शौक़-ए-ख़ुद-बीनी सितम नींदें जवानी की ग़ज़ब
बे-ख़बर सोते हैं वो रक्खा है मुँह पर आईना
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
अभी है ताज़ा ताज़ा शौक़-ए-ख़ुद-बीनी अभी क्या है
अभी वो ख़ैर से नख़वत के ख़ूगर होते जाते हैं