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ग़ज़ल
मोहब्बत इक न इक दिन ये हुनर तुम को सिखा देगी
बग़ावत पर उतरना और ख़ुद-मुख़्तार हो जाना
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
किसी की रहबरी 'बेबाक' हम से किस तरह होगी
न जाने कब हमारी फ़िक्र ख़ुद-मुख़्तार हो जाए
अभेकुमार बेबाक
ग़ज़ल
जलसे ही जलसे हैं जब से वो हुए ख़ुद-मुख़्तार
कोई इतना नहीं कहता कि ये क्या करते हैं
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
हाँ ये सच है सर-ब-सर खोए गए हैं अक़्ल-ओ-होश
दिल में धड़कन है अभी दिल तो है ख़ुद-मुख़्तार अभी
हबीब तनवीर
ग़ज़ल
ख़ुद को फिर 'मुश्ताक़' सन्नाटा बनाना ठीक है
बात जब बनती नज़र आए नहीं बातों के बाद