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ग़ज़ल
अजब सौदा-ए-वहशत है दिल-ए-ख़ुद-सर में रहता है
ये कैसी छब का मालिक है ये कैसे घर में रहता है
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
जितना बरहम वक़्त था उतने ही ख़ुद-सर हम भी थे
मौज-ए-तूफ़ाँ था अगर पल पल तो पत्थर हम भी थे
ख़ावर रिज़वी
ग़ज़ल
ख़ुद-सर था ख़ुद-ग़रज़ भी था वो बदमिज़ाज भी
ठुकरा चुका है इस लिए उस को समाज भी
राना मज़हरी देहलवी
ग़ज़ल
फ़ैज़-ए-उस्ताद से ख़ाली नहीं कोई शाइ'र
यूँ तो महफ़िल में बहुत ‘शाइ'र’-ए-ख़ुद-सर देखे
शाइर फ़तेहपुरी
ग़ज़ल
पूछते काश कभी हम से बुतान-ए-ख़ुद-सर
दिल का क्या हाल है क्यों हाथ में पैमाना है
ज़ाहिद अली ख़ान असर
ग़ज़ल
सख़्त-जाँ ही नहीं हम ख़ुद-सर-ओ-ख़ुद्दार भी हैं
नावक-ए-नाज़ ख़ता है तो ख़ता हो साक़ी