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ग़ज़ल
इब्न-ए-आदम ख़ोशा-ए-गंदुम पे है माइल-ब-जंग
ये न है मस्जिद का क़िस्सा और न बुतख़ानों की बात
वामिक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
ख़ोशा-ए-उम्र से गिरते रहे साआ'त-ए-गिराँ
ख़ोशा-ए-उम्र में अब वक़्त के दाने न रहे
सय्यद जाफ़र अमीर
ग़ज़ल
क्यों न हो इश्क़-ए-हुस्न-ए-गंदुम-गूँ
मैं भी आख़िर हूँ नस्ल-ए-आदम में