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ग़ज़ल
इब्तिदा ही इब्तिदा है इंतिहा इस की नहीं
दर-हक़ीक़त ये मोहब्बत ख़्वाब-ए-बे-ताबीर है
मुनीर भोपाली
ग़ज़ल
ऐन ग़फ़लत थी कि मर कर भी न कुछ हासिल हुआ
ज़िंदगी समझे हुए थे ख़्वाब-ए-बे-ताबीर को
मुंशी बनवारी लाल शोला
ग़ज़ल
दिल की हालत है कि जैसे इक तिलिस्म-ए-बे-कलीद
हर तमन्ना हर्फ़-ए-बे-ता'बीर है तेरे बग़ैर
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
ब-ख़याल-ए-दोस्त आख़िर कोई ख़्वाब-ए-हम-किनारी
कोई ख़्वाब-ए-हम-किनारी शब-ए-ख़्वाब-ए-बे-क़राराँ
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
वो आएँ यूँ मिरे आग़ोश-ए-इश्क़ में 'अख़्तर'
कि जैसे आँखों में इक ख़्वाब-ए-बे-क़रार आए
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
उस के लिए आँखें दर-ए-बे-ख़्वाब में रख दूँ
फिर शब को जला कर उन्हें मेहराब में रख दूँ
जावेद शाहीन
ग़ज़ल
वो मंज़र-ए-बे-नूर था ऐ जान-ए-जाँ ये ख़्वाब है
वो जादा-ए-बे-मेहर था इस राह में महताब है
मुईद रशीदी
ग़ज़ल
महव-ए-ख़्वाब-ए-हाल हैं ताबीर-ए-मुस्तक़बिल से दूर
ख़ुफ़्ता-ज़ेहनी ने किया है किस क़दर हासिल से दूर