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ग़ज़ल
मार-गज़ीदा कौन बचा है 'बासिर' शुक्र करो तुम
ठीक भी हो जाओगे लेकिन ख़ासी देर लगेगी
बासिर सुल्तान काज़मी
ग़ज़ल
नज़र-बाज़ों को भी धोका हुआ फैशन के छल-बल से
वो अक्सर अच्छी ख़ासी छोकरी को छोकरा समझे
बुलबुल काश्मीरी
ग़ज़ल
दमा की वो मरीज़ा है मुझे खाँसी ने घेरा है
बुढ़ापे में बड़ी मजबूरियाँ दोनों तरफ़ से हैं
वहिद अंसारी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
कह दो ये अपनी माँ से करे फ़न का एहतिराम
खाँसी ये क्या है जिस में कि सुर है न ताल है
क़ाज़ी गुलाम मोहम्मद
ग़ज़ल
साथ किसी का कौन यहाँ पर सारी उम्र निभाता है
अच्छी-ख़ासी दुश्वारी है दिल को ये समझाने में
वसीम अहमद
ग़ज़ल
अच्छी ख़ासी बज़्म सजी है कोई अच्छी बात कहो
इतने गुम-सुम क्यूँ रहते हो घर में सब कुछ ठीक तो है
कविता किरण
ग़ज़ल
हवादिस अच्छी-ख़ासी शख़्सियत को तोड़ देते हैं
बदल जाती है शक्ल ऐसी कि पहचानी नहीं जाती