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ग़ज़ल
कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं
बहुत आगे गए बाक़ी जो हैं तय्यार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
मैं ने दुनिया में फ़क़त देखे हैं जाने वाले
मैं ने देखे ही नहीं हैं कभी आने वाले
फ़ैसल इम्तियाज़ ख़ान
ग़ज़ल
मुँह पे ले दामन-ए-गुल रोएँगे मुर्ग़ान-ए-चमन
बाग़ में ख़ाक उड़ाएगी सबा मेरे बा'द