आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "गड़"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "गड़"
ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
उस पर भी दुश्मनों का कहीं साया पड़ गया
ग़म सा पुराना दोस्त भी आख़िर बिछड़ गया
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
लाज से हाए मर जाऊँगी मैं मिट्टी में गड़ जाऊँगी
जब सखियाँ मुझ को छेड़ेंगी ले कर पी का नाँव रे
ग़ौस सीवानी
ग़ज़ल
ज़मीं में शर्म से उस क़द की गड़ गया है सर्व
हुई हैं उस को न हासिल नदामतें क्या क्या
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
दिल में गड़ जाती है जब साअ'त-ए-माज़ी की सलीब
वक़्त रुक जाता है इंसान गुज़र जाता है
अब्दुल्लाह जावेद
ग़ज़ल
देखा तुझे जो ख़ून-ए-शहीदाँ से सुर्ख़-पोश
तुर्क-ए-फ़लक ज़मीं में ख़जालत से गड़ गया
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
परसों मैं बाज़ार गया था दर्पन लेने की ख़ातिर
क्या बोलूँ दूकान पे ही मैं शर्म के मारे गड़ बैठा
नवीन सी. चतुर्वेदी
ग़ज़ल
वही उभरी है शिकन बन के जबीं पर तेरी
गड़ गई दिल में तिरे क्या किसी बद-ज़ात की बात