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ग़ज़ल
दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए
क्या हुई ज़ालिम तिरी ग़फ़लत-शिआरी हाए हाए
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ऐ सर-ए-शोरीदा अब तेरे वो सौदा क्या हुए!
क्या सदा से थी यही ग़फ़लत-शिआरी ज़िंदगी
ग़ुलाम भीक नैरंग
ग़ज़ल
हर इक शय का है अंदाज़ा मगर पायाँ नहीं हरगिज़
तिरी ग़फ़लत-शिआरी का मिरी उम्मीद-वारी का
मीर मेहदी मजरूह
ग़ज़ल
हो गया है सर्द अब बाज़ार-ए-सौदा-ए-जुनूँ
मिल गई क़िस्मत को इक ग़फ़लत-शिआरी ज़िंदगी
अल्लाह दी शरारत
ग़ज़ल
देखा कुछ आज यूँ किसी ग़फ़लत-शिआ'र ने
मैं अपनी उम्र-ए-रफ़्ता को दौड़ा पुकारने
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
सोने दिया न उस बुत-ए-ग़फ़लत-शिआ'र को
अफ़्साना दर्द-ए-दिल का सुना कर तमाम रात