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ग़ज़ल
ग़ाफ़िलों के लुत्फ़ को काफ़ी है दुनियावी ख़ुशी
आक़िलों को बे-ग़म-ए-उक़्बा मज़ा मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
नफ़स की आमद-ओ-शुद है नमाज़-ए-अहल-ए-हयात
जो ये क़ज़ा हो तो ऐ ग़ाफ़िलो क़ज़ा समझो
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
ग़ाफ़िलों के कान कब खुलते हैं सन कर शोर-ए-हश्र
सोने वालों को जगा सकता नहीं ग़ुल दूर का
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
हवा में फिरते हो क्या हिर्स और हवा के लिए
ग़ुरूर छोड़ दो ऐ ग़ाफ़िलो ख़ुदा के लिए
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
हम से कुछ आगे ज़माने में हुआ क्या क्या कुछ
तो भी हम ग़ाफ़िलों ने आ के क्या क्या कुछ
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
छपर-खट याँ जो सोने की बनाई इस से क्या हासिल
करो ऐ ग़ाफ़िलो कुछ क़ब्र में तदबीर सोने की
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
'अबस इस ज़िंदगी पर ग़ाफ़िलों का फ़ख़्र करना है
ये जीना कोई जीना है कि जिस के साथ मरना है
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
करते हो फ़िक्र ग़ाफ़िलो क्या घर के वास्ते
दुनिया में सब मुक़ीम हैं दम भर के वास्ते