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ग़ज़ल
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
गर मुनासिब नहीं मुझ को मंज़िल मिले
है सफ़र लाज़मी क्यूँ ख़ुदा फिर मुझे
जतीन्द्र वीर यख़मी ’जयवीर
ग़ज़ल
मुसीबत जिस से ज़ाइल हो रही सामान कर देगा
न घबराना ख़ुदा सब मुश्किलें आसान कर देगा
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
दयार-ए-ग़ैर में हम भी सदाओं से मचल जाते
मगर थे कौन अपने जिन के दा'वों से पिघल जाते
सीमा अब्बासी
ग़ज़ल
अरे सय्याद इस बेदाद पर बेदाद क्या कीजे
शिकार-ए-ना-तवाँ मुझ से के तीं आज़ाद क्या कीजे