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ग़ज़ल
मिरे आँगन में इक नन्ही गिलहरी का बसेरा है
बहुत मासूम सा इक नक़्श मेरी क्यारियों पर है
हुमैरा रहमान
ग़ज़ल
क़फ़स में मुझ से रूदाद-ए-चमन कहते न डर हमदम
गिरी है जिस पे कल बिजली वो मेरा आशियाँ क्यूँ हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नोशी गिलानी
ग़ज़ल
तिरी दीद से सिवा है तिरे शौक़ में बहाराँ
वो चमन जहाँ गिरी है तिरे गेसुओं की शबनम