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ग़ज़ल
तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी कामयाब न हो सकीं
तिरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
ख़िज़ाँ की रुत में गुलाब लहजा बना के रखना कमाल ये है
हवा की ज़द पे दिया जलाना जला के रखना कमाल ये है
मुबारक सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं
ये मोहब्बतों के चराग़ हैं इन्हें नफ़रतों की हवा न दे