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ग़ज़ल
गेसू-ए-शेर-ओ-अदब के पेच सुलझाता हूँ मैं
ज़ुल्मत-ए-शब में पयाम-ए-सुब्ह-ए-नौ लाता हूँ मैं
ज़हीर अहमद ताज
ग़ज़ल
ज़माना क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन को भूल न जाए
किसी के हल्क़ा-ए-गेसू में वो कशिश ही नहीं
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
उड़ गया है मंज़िल-ए-दुश्वार में ग़म का समंद
गेसू-ए-पुर-ए-पेच-ओ-ख़म के ताज़ियाने की कहो
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
निकले न फँस के गेसू-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म से दिल
साहिल पे ख़ाक पहुँचे जो कश्ती भँवर में है
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
रिश्ता-ए-जाँ में गिरह पड़ गई उलझन के सबब
दिल को जब गेसू-ए-पुर-पेच-ओ-शिकन याद आया
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
फ़लक की देख कर रफ़्तार-ए-पेचीदा को हैराँ हूँ
कहाँ जा कर पहुँच करता है 'मज़हर' पेच-ओ-ख़म मेरा