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ग़ज़ल
चकना-चूर हुआ ख़्वाबों का दिलकश दिलचस्प आईना
टेढ़ी तिरछी तस्वीरें हैं टूटे-फूटे दर्पन में
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
ज़माना भर तो पत्थर है फ़क़त हैं आबगीने हम
ज़रा सी ठेस क्या पहुँची कि चकना-चूर हो जाना
आफ़ताब राँझा
ग़ज़ल
कहा जो मैं ने मेरे दिल की इक तस्वीर खिंचवा दो
मँगा कर रख दिया इक शीशा चकनाचूर पहलू में
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
साक़ी-ए-सर-मस्त से जब तक कि लेने को बढ़ूँ
हाथ से गिरते ही चकना-चूर पैमाना हुआ
पंडित जगमोहन नाथ रैना शौक़
ग़ज़ल
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
हुए संग-ए-जफ़ा से शीशा-ए-दिल के कई टुकड़े
बस अब इस से ज़ियादा और चकनाचूर मत कीजो
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
ग़ज़ल
यारों के इख़्लास से पहले दिल का मिरे ये हाल न था
अब वो चकनाचूर पड़ा है जिस शीशे में बाल न था
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
ग़ज़ल
झूटे वा'दे सुनते सुनते सपने चकना-चूर हुए
मायूसी बे-ज़ारी दिल में मेहमाँ होती जाती है