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ग़ज़ल
जल गया आग में आप अपने मैं मानिंद-ए-चिनार
पीसते रह गए दाँत अर्रा-ओ-सोहाँ क्या क्या
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
तिरी सवारी में कब पंज शाख़े हैं ऐ सर्व
जिलौ में सेहन-ए-गुलिस्ताँ से है चिनार आया
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
इस की छुवन से जल उठा मेरे बदन का रोम रोम
मुझ को तो दस्त-ए-यार ने जैसे चिनार दिया
आतिफ़ वहीद यासिर
ग़ज़ल
ख़िज़ाँ का ख़ौफ़ मुझे खाए जा रहा है 'कमाल'
चिनार सुर्ख़ न हों आतिश-ए-सुख़न की तरह
कमाल अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
सुर्ख़ पोशाक पहन कर वो सही क़द जो गया
जल उठे सर्व-ए-चमन मिस्ल-ए-चिनार आप से आप