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ग़ज़ल
मज़ा जब था कि बोतल से उबलती फैलती रुत में
धुआँ साँसों से उठता गर्म बोसों से बदन छिलते
फ़ुज़ैल जाफ़री
ग़ज़ल
यूँ शरर छिड़ती हैं जैसे कि हवाई है छुटी
इक समाँ आह मिरी ता-ब-समा बाँधे है
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
कूचे में उस के जम्अ' हैं आशिक़ भीड़ लगी है कोसों तक
शोर भी है हंगामा भी है शाने से छिलता शाना भी
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
वफ़ा की दास्ताँ दुनिया में 'कैफ़ी' कब नहीं छिड़ती
ज़बान-ए-ख़ल्क़ पर कब मेरा अफ़्साना नहीं आता
अब्दुर्रशीद ख़ान कैफ़ी महकारी
ग़ज़ल
दिल ले के हमारा फिरता है ये कौन वतीरा तेरा है
करता है छिछोरी बातें क्यूँ हर बात में तेरा मेरा है
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
ग़ज़ल
ज़िंदगी की ताबनाकी दौलत-ओ-सर्वत से क्यों
छिछले दरिया रोज़ ही बढ़ते रहे घटते रहे
वजाहत अली संदैलवी
ग़ज़ल
इश्क़ की आग पे ये तेल छिड़कती है मियाँ
ख़ुश्क आँखों से जो अश्कों की लड़ी आती है