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ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
किस को फ़ुर्सत थी कि बतलाता तुझे इतनी सी बात
ख़ुद से क्या बरताव तुझ से छूट कर मैं ने किया
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
तालिब बाग़पती
ग़ज़ल
मैं ने अपना हक़ माँगा था वो नाहक़ ही रूठ गया
बस इतनी सी बात हुई थी साथ हमारा छूट गया
दीप्ति मिश्रा
ग़ज़ल
जिन से हम छूट गए अब वो जहाँ कैसे हैं
शाख़-ए-गुल कैसी है ख़ुश्बू के मकाँ कैसे हैं
राही मासूम रज़ा
ग़ज़ल
किसी के छूट जाने का उसे क्यों ग़म नहीं होता
तिरा दिल है कि पत्थर है कभी जो नम नहीं होता