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ग़ज़ल
सदियों के दिल की धड़कन है उन की जागती आँखों में
ये जो फ़लक पर हँसमुख चंचल जगमग जगमग तारे हैं
जमील मलिक
ग़ज़ल
क्या हसरत से देख रहे हैं हमें ये जगमग से साहिल
हाए हमारे हाथों से भी छूटे हैं पतवार कहाँ
कुमार पाशी
ग़ज़ल
कौन हमारा दर्द बटाए कौन हमारा थामे हात
उन के नगर में जगमग-जगमग अपने देस में रात ही रात
जमील मलिक
ग़ज़ल
खुली जो आँख तो चेहरे पे जगमग थी फुवारों की
कि मिलने आई थी कल रात मुझ से ना-गहाँ बारिश