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ग़ज़ल
कुछ लिहाज़-ए-जज़्ब-ए-उल्फ़त कुछ ख़याल-ए-ज़ब्त-ए-शौक़
किस तरह हम उन से अपने ग़म का अफ़्साना कहें
कँवल एम ए
ग़ज़ल
हमारा मक़सद-ए-अव्वल है जज़्ब-ए-शौक़-ओ-सर-मस्ती
यही वो ज़िंदगी है जिस को हम कामिल समझते हैं
कलीम अहमदाबादी
ग़ज़ल
फ़ाक़ा-मस्ती में भी जीने की अदा ले जाएँगे
ये लुटेरे मेरे घर से और क्या ले जाएँगे
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
जो आए दिल में सब जज़्ब-ए-निगाह-ए-ना-तवाँ कर लें
हम अर्ज़-ए-शौक़ से पहले न उन को राज़-दाँ कर लें
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
याद-ए-अय्यामे कि था ज़ोरों पे जज़्ब-ए-हुस्न-ओ-इश्क़
वो मिरे दिल का तड़पना बे-क़रारी आप की