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ग़ज़ल
हवाएँ रुख़ तो बदलने लगी हैं ऐ 'ग़ौसी'
शबाब-ए-जश्न-ए-चराग़ाँ है देखिए क्या हो
ग़ौस मोहम्मद ग़ौसी
ग़ज़ल
तीरगी में भी रहा जश्न-ए-चराग़ाँ का समाँ
बर्क़ के शो'ले फ़रोज़ाँ रहे काशाने में
सुदर्शन कुमार वुग्गल
ग़ज़ल
महसूस ये हुआ कि जले हम तमाम शब
देखा है यूँ भी जश्न-ए-चराग़ाँ कभी कभी