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ग़ज़ल
ये भी कमाल ही तो है क़ाबिल-ए-दाद साहिबान
आज कलाम-ए-'जश्न' में कोई कमाल भी नहीं
सुनील कुमार जश्न
ग़ज़ल
जाने क्या बात है क्यूँ जश्न-ए-मसर्रत में नदीम
याद आती है तिरी शाम-ए-ग़रीबाँ की तरह
फ़ैज़ुल हसन ख़्याल
ग़ज़ल
इक जश्न-ए-मसर्रत पेश-ए-बहीर था उस दिन भी
सब साकित हो के शिकोह-ए-सिपाह को देखते थे
मोहम्मद ख़ालिद
ग़ज़ल
अभी ये ज़ख़्म-ए-मसर्रत है ना-शगुफ़्ता सा
छिड़क दो मेरे कुछ आँसू हँसी के चेहरे पर
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
गौरय्यों ने जश्न मनाया मेरे आँगन बारिश का
बैठे बैठे आ गई नींद इसरार था ये किसी ख़्वाहिश का
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
हमारे दम से है रौनक़ तुम्हारी महफ़िल की
हमीं न होंगे तो जश्न-ए-सलीब-ओ-दार कहाँ