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ग़ज़ल
निस्बत-ए-'इल्म है बहुत हाकिम-ए-वक़्त को अज़ीज़
उस ने तो कार-ए-जहल भी बे-उलमा नहीं किया
जौन एलिया
ग़ज़ल
एक है जब शोर-ए-जह्ल ओ बाँग-ए-हिकमत का मआल
दिल हलाक-ए-ज़ौक़-ए-गुलबाँग-ए-परेशाँ क्यूँ न हो
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
हुई इस दौर में मंसूब मुझ से बादा-आशामी
फिर आया वो ज़माना जो जहाँ में जाम-ए-जम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
खुले सरों का मुक़द्दर ब-ए-फ़ैज़-ए-जहल-ए-ख़िरद
फ़रेब-ए-साया-ए-अफ़्लाक के सिवा क्या है
हिमायत अली शाएर
ग़ज़ल
परवेज़ शाहिदी
ग़ज़ल
वही किब्र है मिरी ख़ाक में वही जहल है मिरी ज़ात में
जो शरार है वो बुझा नहीं जो चराग़ है वो जला नहीं
एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
क़ुरआन-ए-पाक से कुछ ऐसा मुझ को फ़ैज़ मिला
के जिस ने जहल मिरे क़ल्ब से निकाल दिया