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ग़ज़ल
हम पास से तुम को क्या देखें तुम जब भी मुक़ाबिल होते हो
बेताब निगाहों के आगे पर्दा सा ज़रूर आ जाता है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
वही शख़्स जिस पे अपने दिल-ओ-जाँ निसार कर दूँ
वो अगर ख़फ़ा नहीं है तो ज़रूर बद-गुमाँ है
बशीर बद्र
ग़ज़ल
नोशी गिलानी
ग़ज़ल
तेरी महफ़िल तेरे जल्वे फिर तक़ाज़ा क्या ज़रूर
ले उठा जाता हूँ ज़ालिम ले चला जाता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
जब अपने घर पे बुलाता हूँ मैं कभी उन को
उन्हें ज़रूर कोई ख़ास काम होता है