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ग़ज़ल
वहदत-ए-हुस्न के जल्वों की ये कसरत ऐ इश्क़
दिल के हर ज़र्रे में आलम है परी-ख़ाने का
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
मेरी मर्ज़ी थी मैं ज़र्रे चुनता या लहरें चुनता
उस ने सहरा एक तरफ़ रखा और दरिया एक तरफ़
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
शाएर-ए-फ़ितरत हूँ जब भी फ़िक्र फ़रमाता हूँ मैं
रूह बन कर ज़र्रे ज़र्रे में समा जाता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
कई बार इस की ख़ातिर ज़र्रे ज़र्रे का जिगर चेरा
मगर ये चश्म-ए-हैराँ जिस की हैरानी नहीं जाती