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ग़ज़ल
उन से बहार ओ बाग़ की बातें कर के जी को दुखाना क्या
जिन को एक ज़माना गुज़रा कुंज-ए-क़फ़स में राम हुए
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
कोई बादा-कश जिसे मय-कशी का तरीक़-ए-ख़ास न आ सका
ग़म-ए-ज़िंदगी की कशा-कशों से कभी नजात न पा सका
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
मैं गुलचीं था बहार-ए-ज़िंदगी के गुल्सितानों का
जो दिन फूलों में बीते थे वो अक्सर याद आते हैं
ए. डी. अज़हर
ग़ज़ल
तन्हा जिए तो ख़ाक जिए लुत्फ़ क्या लिया
ऐ ख़िज़्र ये तो ज़िंदगी में ज़िंदगी नहीं
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
समो न तारों में मुझ को कि हूँ वो सैल-ए-नवा
जो ज़िंदगी के लब-ए-मो'तबर से निकलेगा