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ग़ज़ल
कभी पूछा मैं ने बहिश्त को कि बताओ तो वो है किस तरफ़
तो 'शबाब' कूचा-ए-यार का मुझे ज़ाहिदों ने पता दिया
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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कभी पूछा मैं ने बहिश्त को कि बताओ तो वो है किस तरफ़
तो 'शबाब' कूचा-ए-यार का मुझे ज़ाहिदों ने पता दिया