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ग़ज़ल
बर्क़-रफ़्तार वो यूँ जान-ए-जहाँ मिलते हैं
हम जहाँ होते हैं वो हम को वहाँ मिलते हैं
अज़ीज़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
गरचे दिल में ही सदा जान-ए-जहाँ रहते हो
पर ब-ज़ाहिर नहीं मालूम कहाँ रहते हो
सैय्यद मोहम्मद मीर असर
ग़ज़ल
ग़म-ए-हिज्राँ से ऐ जान-ए-जहाँ हम बन-सँवर निकले
सितम तेरी जुदाई के सभी ही बे-असर निकले
इरफ़ान ग़ाज़ी
ग़ज़ल
जबकि वो जान-ए-जहाँ बद-मस्त-ए-ख़्वाब आया नज़र
ज़ाहिद-ए-सद-साला मस्जिद में ख़राब आया नज़र
क़मर हिलाली
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
मीर सय्यद मुज़फ्फर अली ज़फ़र मुज़ाहरी
ग़ज़ल
कोई आज़ुर्दा करता है सजन अपने को हे ज़ालिम
कि दौलत-ख़्वाह अपना 'मज़हर' अपना 'जान-ए-जाँ' अपना
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
सच पूछिए तो जान-ए-जहाँ मेरे क़त्ल में
तिरछी नज़र के साथ ही चीन-ए-जबीं शरीक