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ग़ज़ल
शाहबाज़ नय्यर
ग़ज़ल
हादसा ये है कि सारी ज़िल्लतों के बावजूद
रफ़्ता रफ़्ता ज़ख़्म सू-ए-इंदिमाल आ जाएगा
ख़ुर्शीद रिज़वी
ग़ज़ल
बे-हिसी बे-ग़ैरती भी जुज़्व-ए-फ़ितरत बन गई
हँस रहा हूँ अंजुमन में ज़िल्लतों के बावजूद
कौसर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जिबिल्लत सर उठा ले तो ख़स-ओ-ख़ाशाक है इंसाँ
बड़ा हो नाम या ऊँचा नसब कुछ भी नहीं होता
ख़ालिदा उज़्मा
ग़ज़ल
किसी के लुत्फ़-ए-कम को देर लगती है सिवा होते
चटकने तक तो हर गुल की जिबिल्लत इंफ़िआ'ली है